- गवाक्ष जोशी
‘आसिफा ‘ , आज ये नाम पूरे देश के कानों में गूंज रहा है और साथ ही गूंज रही है 8 साल की मासूम आसिफा की घुटी हुई चीख़ कि मेरा क्या दोष है जिसकी ऐसी सज़ा मुझे मिली। आज कुछ लोगों के नाम बलात्कार और हत्या के दोषियों के रूप में हम सुन रहे हैं मगर क्या सच में सिर्फ साँझी राम और उसके कुछ साथी इस अपराध के दोषी हैं??
आज मूल प्रश्न ये है कि ऐसी नौबत ही क्यों आई के आसिफा को आठ साल की उम्र में अपनी अस्मत और जान गँवानी पड़ी? इसका उत्तर हमें अपने आसपास घट रहे घटनाक्रम में मिलेगा जहाँ हम ये भूल चुके हैं कि हम इन्सान पहले हैं और किसी जाती और धर्म के बाद में । आसिफा के साथ जो कुछ भी हुआ उसके मूल में है धर्म के आधार पर आपसी वैमनस्य जो इस नीचता पर उतर आया कि अबोध बच्ची का बलात्कार देवस्थान पर किया गया और फिर पूजा की गई और ऐसा कई दिन हुआ और अन्त में बच्ची की नृशंस हत्या कर दी गई ।
जब बच्ची के लिए इन्साफ माँगा गया तो जय श्री राम और भारत माता की जय जैसे भारी नारों के बोझ तले इन्साफ के लिए लगाई आवाज़ को दबाने की कोशिश की गई । मेरे साथी ने इस सम्बन्ध में आज फेसबुक पर लिखा तो उसे कुछ बुद्धिजीवी लोगों ने हिदायत दी की ऐसा न करो इससे हमारे धर्म का अपमान होगा । तो इस से समझना होगा कि हम कहाँ आ चुके हैं जहाँ हमें 8 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म जो हुआ वो तो नहीं दिखता मगर उस बच्ची का धर्म दिखता है थू है ऐसी सोच पर और मैं खुश हूँकी मैं इस घृणित सोच का हिस्सा नहींहूँ और न ही मेरा धर्म और न ही मेरा राम और न ही मेरी भारत माता मुझसे कहती है कि ऐसे घृणित काम करने वालों के साथ खड़े होना है आज इस साम्प्रदायिक सोच पर अगर समाज ने अंकुश न लगाया तो ये वो आग बनेगी जिसे आपके मेरे घर तक पहुँचने से कोई रोक नहीं पाएगा। समय आ गया है हम सबके सजग होने का और इस आग की तरह फैलती घृणित सोच को रोकने का।